श्री रायमाता चालीसा

 

श्री रायमाता चालीसा


गौरी सुत का स्मरण कर , धरुँ सरस्व्ती का ध्यान ।

सार रुप में कुल देवी की , महिमा करुँ बखान ॥

नित्य प्रति जो सच्चे मन से , पाठ करे कुल देवी चालीसा ।

दया करो उस भक्त पे रायमाता , सिद्ध करो उसकी गोरिसा ।

ममता मयी करुणा की सागर , भक्ती प्रेम रस की गागर ॥

चारों और प्रताप तुम्हारा , तुमसे सदा काल भी हारा ।

कुल की देवी , कुल की रक्षिणी , कुल कष्टो की तू ही भक्षिणी ।

तीन लोक तेरा डंका बाजे , देवी देव गुण तेरा गावे ।

एक रुप सोलाह अवतार , कुल देवी जग पालन हार ।

यथा रुप तथा गुण की द्रात्रिक , भक्त पूजे सोडष मात्रिक ।

पद्मा रुप से ल्क्ष्मी पूजन , सुख धन वैभव पावे निर्धन ।

शची ईन्द्र भार्या मन शुद्धि, मेघा पूजन से मिली बुद्धि ।

सावित्री आधार सृष्टि का , ब्रम्हा भार्या की दिव्य दृष्टि का ।

जय विजय से जीत तुम्हारी , देव सेना रक्षक है प्यारी ।

तृष्टी पृष्टी से मिलता दया है , सुन्देर स्वास्थ प्रदान किया है ।

स्वधा स्वाहा है रुप अगॉनी का , घृति रुप है भक्ति लगन का ।

पूजन द्वार लोक माता है , भक्त के भाग्य की दाता है ।

रिद्धि सिद्धि माँ के प्रताप से , कारज सिद्ध हूए सब आपके ।

प्रथम पूजन कर तुम्हें मनाते , पूजन से सब द्वार खुलाते ।

जय रायमाता श्री अम्बा , मंगल कुल देवी जगदम्बा ।

सबके मन में बसी हुई है , ग्राम देव संग रची हुई है ।

गांगियासर में दरबार है साजे , नित नौबत तेरे द्वारे बाजे ।

स्वर्ग से बढ़कर धाम है तेरा , श्री रायमाता नाम है तेरा ।

घर-घर तेरा रुप बिराजे , माँ बहनों बेटी में साजे ।

प्रथम पूजन में तुम्हें मनाते , नित उठ गुण तेरा माँ गाते ।

जिस पर कृपा हो तेरी रायमाता , उसके मान की ध्वजा फहराती ।

कुल की देवी कहलाती माँ , कल्याण मार्ग को बतलाती माँ ।

भक्त्तां की कुलदेवी कहाई , सब जग माँ की देता दुहाई ।

सर्व जाति सब मानुष भजते , जात जडुला जागरण करते ।

तीन लोक देवों की शक्ति , सब करते माँ तेरी भक्ति ।

जग का कण कण तुम चमकाती , अन्तर मन में ज्योत जगाती ।

युग युग में नये रुप धरे है , रुप धरके कल्याण करे हैं ।

श्री रातमाताजी के विशाल मण्ड में , मण्ड के अन्दर द्वार खण्ड में ।

शक्ति रुप की कई प्रतिमायें , देखो कैसी शोभा पायें ।

कुल देवी पितरों की आन , अखण्ड ज्योति जहाँ रखे मान ।

विराजे संग तेरे देव तमाम , तभी तो हो जल्दी पूरण काम ।

सब रुपो के सुन्दर फूल , मिलके बनाते शक्ति त्रिशूल ।

चारों दिशा में तेज तुम्हारा , सूर्यचन्द्रकिरण की धारा ।

शक्ति माँ ह्रदय है तुमने पाया , भेद तेरा कोई समझ न पाया ।

सात समुन्दर की बनी स्याही , बृक्षों की माँ कलम बनाई ।

है कुल देवी जगत तारिणी , महिमा तेरी जायेना वरिणी ।

कारज भक्तों के माँ सारो , संकट को माँ तुम ही टारो ।

निस दिन तुमको याद करुँ माँ , भूल चूक सब क्षमा करो माँ ।

विघ्न हरे मंगल करे , कष्ट हरे करे सब ठाठ ।

कुल देवी चालीसा का , नित्य करे जो पाठ ॥

दया करो जीवन को सँवारो माँ , संकट हरो कुलदेवी माँ ।

तीन लोकों की सर्वशक्ति माँ , थारा टाबर म्हे भी माँ ॥

Comments

Popular posts from this blog

रायमाता का इतिहास व प्राकट्य कथा

रायमाता के चमत्कार